Sunday, 21 February 2016
Friday, 12 February 2016
सरस्वती_पूजनोत्सव_की_शुभकामनाएँ !!
या कुन्देन्दु- तुषारहार- धवला या शुभ्र- वस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमन्डितकरा या श्वेतपद्मासना
या ब्रह्माच्युत- शंकर- प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा
श्लोक अर्थ - जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चन्द्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर शङ्कर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही सम्पूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें।
या वीणावरदण्डमन्डितकरा या श्वेतपद्मासना
या ब्रह्माच्युत- शंकर- प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा
श्लोक अर्थ - जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चन्द्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर शङ्कर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही सम्पूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें।
Tuesday, 9 February 2016
'' काशी नगरी जग से न्यारी ''
'' काशी नगरी जग से न्यारी ''
काशी नगरी जग से न्यारी , काशी नगरी सबसे प्यारी.......
रहते हैं त्रिपुरारी , शिव के अंग से निकली काशी ,शिव ने शूल पे धारी….... काशी नगरी सबसे प्यारी…
बिश्वनाथ महा ज्योतिर्लिंग में आन बिराजे भोले ,
दर्शन इनके जोभी करता भाग्य को उसके खोले ।
महिमा इसकी गूँज रही है सप्त पुरिन में भारी । । काशी नगरी जग से न्यारी ………
काशी के बन कोतवाल भैरौ हैं यहाँ बिराजे
अन्न देती मा अन्नपूर्णा सदा यहाँ पर राजे ।
यहाँ के हर एक मन्दिर की सोभा सबसे है न्यारी । । काशी नगरी जग से न्यारी…….......
दुर्गा कुण्ड पे दुर्गा भवानी के दर्शन सब कोई पाये
संकट मोचन हनूमान की शरण में जोभी आये ।
सब संकट पल में हर लेते हनूमान बलधारी । । काशी नगरी जग से न्यारी …………
कीट पतंग या मरकट मानव जोभी काशी का वाशी
शिव की प्यारी इस नगरी में मुक्ति सहज में पाती ।
प्रेम से हर हर शंकर बोलो मुक्ति है दासी तुम्हारी । । काशी नगरी जग से न्यारी …………(रचनाकार-आयुश कु. दुबे)
काशी नगरी जग से न्यारी , काशी नगरी सबसे प्यारी.......
रहते हैं त्रिपुरारी , शिव के अंग से निकली काशी ,शिव ने शूल पे धारी….... काशी नगरी सबसे प्यारी…
बिश्वनाथ महा ज्योतिर्लिंग में आन बिराजे भोले ,
दर्शन इनके जोभी करता भाग्य को उसके खोले ।
महिमा इसकी गूँज रही है सप्त पुरिन में भारी । । काशी नगरी जग से न्यारी ………
काशी के बन कोतवाल भैरौ हैं यहाँ बिराजे
अन्न देती मा अन्नपूर्णा सदा यहाँ पर राजे ।
यहाँ के हर एक मन्दिर की सोभा सबसे है न्यारी । । काशी नगरी जग से न्यारी…….......
दुर्गा कुण्ड पे दुर्गा भवानी के दर्शन सब कोई पाये
संकट मोचन हनूमान की शरण में जोभी आये ।
सब संकट पल में हर लेते हनूमान बलधारी । । काशी नगरी जग से न्यारी …………
कीट पतंग या मरकट मानव जोभी काशी का वाशी
शिव की प्यारी इस नगरी में मुक्ति सहज में पाती ।
प्रेम से हर हर शंकर बोलो मुक्ति है दासी तुम्हारी । । काशी नगरी जग से न्यारी …………(रचनाकार-आयुश कु. दुबे)
Monday, 8 February 2016
Saturday, 6 February 2016
Our_Kashi
गंगा तरंग रमणीय जटा कलापं
गौरी निरंतर विभूषित वाम भागम्
नारायण प्रियमनंग मदापहारं
काशीं पुरपतिं भज विश्वनाथम् ||
गंगा की रमणीय तरंग जिनकी जटाओं में खेल रही
गौरी की प्रियता जिन्हें सदैव प्राप्त है
नारायण से जिनका रत्ती भर भी अलगाव नहीं
जो मोह-मद-काम आदि दोषों का अपहरण करते हैं
काशीं पुरी यानी नगरी के स्वामी ऐसे विश्वनाथ को हम क्यों नहीं भजते हैं ?
__ॐ__
||श्लोक : आदिशंकराचार्य ||
गौरी निरंतर विभूषित वाम भागम्
नारायण प्रियमनंग मदापहारं
काशीं पुरपतिं भज विश्वनाथम् ||
गंगा की रमणीय तरंग जिनकी जटाओं में खेल रही
गौरी की प्रियता जिन्हें सदैव प्राप्त है
नारायण से जिनका रत्ती भर भी अलगाव नहीं
जो मोह-मद-काम आदि दोषों का अपहरण करते हैं
काशीं पुरी यानी नगरी के स्वामी ऐसे विश्वनाथ को हम क्यों नहीं भजते हैं ?
__ॐ__
||श्लोक : आदिशंकराचार्य ||
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