गंगा तरंग रमणीय जटा कलापं
गौरी निरंतर विभूषित वाम भागम्
नारायण प्रियमनंग मदापहारं
काशीं पुरपतिं भज विश्वनाथम् ||
गंगा की रमणीय तरंग जिनकी जटाओं में खेल रही
गौरी की प्रियता जिन्हें सदैव प्राप्त है
नारायण से जिनका रत्ती भर भी अलगाव नहीं
जो मोह-मद-काम आदि दोषों का अपहरण करते हैं
काशीं पुरी यानी नगरी के स्वामी ऐसे विश्वनाथ को हम क्यों नहीं भजते हैं ?
__ॐ__
||श्लोक : आदिशंकराचार्य ||
गौरी निरंतर विभूषित वाम भागम्
नारायण प्रियमनंग मदापहारं
काशीं पुरपतिं भज विश्वनाथम् ||
गंगा की रमणीय तरंग जिनकी जटाओं में खेल रही
गौरी की प्रियता जिन्हें सदैव प्राप्त है
नारायण से जिनका रत्ती भर भी अलगाव नहीं
जो मोह-मद-काम आदि दोषों का अपहरण करते हैं
काशीं पुरी यानी नगरी के स्वामी ऐसे विश्वनाथ को हम क्यों नहीं भजते हैं ?
__ॐ__
||श्लोक : आदिशंकराचार्य ||
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